हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,दुआ (प्रार्थना )का अर्थ है माँगना,पुकारना और या आपात स्थिति में अल्लाह के दरबार में गिड़गिड़ा कर रोना, इसी को प्रार्थना का सबसे अच्छा रूप माना जाता है हमें नहीं भूलना चाहिए की दुआ पवित्र स्थान और विभिन्न धर्मों में बहुत प्रचलित है किंतु इसको अलग-अलग जगह, अलग-अलग तरीके से प्राथना की जाती हैं।
इस विषय में अमीर अल-मोमिनिन हज़रत अली (a.s) ने फरमाया:
أَحَبُ الْأَعْمَالِ إِلَى اللَّهِ عَزَّ وَ جَلَّ فِي الْأَرْضِ الدُّعَاءُ
"अल्लाह के लिए पृथ्वी पर सबसे प्रिय कर्म प्रार्थनाएँ हैं।
अल्लाह अपने सेवकों से प्रेम करता है कि मनुष्य उससे बात करें। एक और बात हमें ध्यान देना है कि हमें प्रार्थना करते हुए कभी नहीं थकना चाहिए।
अब प्रश्न उठता है कि हमें किस से दुआ मंगनी चाहिए और कैसे प्रार्थना करनी चाहिए?
1- अल्लाह से दुआ माँगना
प्रार्थना की शर्तों में से पहली शर्त यह है कि ईश्वर से जो चाहे मांगे, क्योंकि ईश्वर ही शक्तिशाली है, ईश्वर को छोड़कर सब कुछ एक दिन समाप्त हो जाएगा और यदि वह चाहे तो गंभीर समस्या को भी चुटकियों मे हल कर सकता है।
जैसा कि कुरान ए मजीद में साफ अक्षरों में बयान किया गया है:
تَبارَکَ الَّذي بِيَدِهِ الْمُلْکُ وَ هُوَ عَلي کُلِّ شَيْءٍ قَديرٌ
वह अल्लाह, जिसके हाथ में संपूर्ण राज्य है तथा जो कुछ वह चाहे, कर सकता है।
2-प्रेम से प्रार्थना करें
प्रार्थना की शर्तों में से दूसरी शर्त यह है कि जब हम अल्लाह के दरबार में प्रार्थना करने के लिए हाथ उठाते हैं,तो अल्लाह प्रसन्न होते हैं और प्रार्थना करने वालों से उन्हें विशेष रूप से लगाव होता है हमें प्रार्थना को एक कर्तव्य के रूप में देखना चाहिए। निनिजी स्वार्थजी के लिये प्रार्थना करने से जितना दूर हो सके उतना दूर रहना चाहिए ।
और इससे भी खूबसूरत हज़रत अली (a.s) फरमाते हैं:
सबसे लोकप्रिय कार्य जो हम अल्लाह के दरबार में अर्पित करते हैं वह प्रार्थना है।
इस संसार में ज्यादातर हम लोग,परिवार,परिचितों,दोस्तों, कक्षा साथीयों और पड़ोसियों को बुलाते हैं क्योंकि हमें उनके साथ कोई कार्य होता है। अच्छा होगा कि कभी-कभी उन्हें कॉल करें या बिना आवश्यकता के उनसे मिलें।
आइए कोशिश करते है कि अल्लाह और उनके सेवकों के साथ ऐसा न हो। देखा जाए तो यह वास्तव में अच्छा नहीं है। तो अब पता चला कि हमारे बीच कोई प्यार नहीं है। हमारा बंधन उनसे प्यार के लिए नहीं,काम के लिए है।
3- हलाल संपत्ति प्राप्त करना
प्रार्थना की शर्तों में से तीसरी शर्त वर्जित (हराम)चीज़ों को खाने से बचना है; क्योंकि हराम धन की वजह से प्रार्थना कुबूल ना होने का कारण है।
पैगंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से किसी ने पूछा हम चाहते हैं कि मेरी दुआ कुबूल हो।
तो आपने उस व्यक्ति से फरमाया:
" सबसे पहले आपका भोजन और खान पान हलाल होना चाहिए और प्रयास करो कि हराम तुम्हारे पेट में न जाए।"
इस का मतलब हराम माल हासिल करने से बचो और हलाल तरीके से कमाओ
हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और एक स्थान पर फरमाते हैं:
الدُّعاءُ مَعَ اَكْلِ الحَرامِ كَالبِناءِ عَلَی الماء
वर्जित भोजन से प्रार्थना करना पानी पर महल बनाने जैसा है।
तो यह स्पष्ट हो गया कि वर्जित भोजन किसी व्यक्ति को सही मार्ग दिखाने की क्षमता नहीं रखता हैं।
4- प्रार्थना के साथ कड़ी मेहनत करना
प्रार्थना की चौथी शर्त मेहनत और लगन है। पहले चरण में हमें ईश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए और साथ में कड़ी मेहनत भी आवश्यक है। यदि हम प्रार्थना करते हैं और प्रयास नहीं करते हैं, तो इसका कोई मूल्य नहीं होगा क्योकि ये दोनों एक दूसरे के लिए अनिवार्य हैं।
इस विषय में पैगंबर खुदा हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक दिन हज़रत अली (a.s) से फरमाते हैं:
बिना प्रयास और मेहनत के प्रार्थना बिना धनुष के तीर चलाने के समान है।
इसलिए अंत में स्पष्ट रूप से एक बात कहना चाहता हूँ कि प्रार्थना मूल रूप से लोगों को समस्याओं से बचाने का अनमोल रतन है और साथ में देश के विकास के लिए हम प्रार्थना करते हैं।